Friday 17 May 2013

जॉन एलिया




1. अख़लाक़ न बरतेंगे मुदारा न करेंगे

अख़लाक़ न बरतेंगे मुदारा न करेंगे
अब हम किसी शख़्स की परवाह न करेंगे

कुछ लोग कई लफ़्ज़ ग़लत बोल रहे हैं
इसलाह मगर हम भी अब इसलाह न करेंगे

कमगोई के एक वस्फ़-ए-हिमाक़त है बहर तो
कमगोई को अपनाएँगे चहका न करेंगे

अब सहल पसंदी को बनाएँगे वातिरा
ता देर किसी बाब में सोचा न करेंगे

ग़ुस्सा भी है तहज़ीब-ए-तआल्लुक़ का तलबगार
हम चुप हैं भरे बैठे हैं गुस्सा न करेंगे

कल रात बहुत ग़ौर किया है सो हम ए "जॉन"
तय कर के उठे हैं के तमन्ना न करेंगे

2. अजब था उसकी दिलज़ारी का अन्दाज़


अजब था उसकी दिलज़ारी का अन्दाज़
वो बरसों बाद जब मुझ से मिला है
भला मैं पूछता उससे तो कैसे
मताए-जां तुम्हारा नाम क्या है?

साल-हा-साल और एक लम्हा
कोई भी तो न इनमें बल आया
खुद ही एक दर पे मैंने दस्तक दी
खुद ही लड़का सा मैं निकल आया

दौर-ए-वाबस्तगी गुज़ार के मैं
अहद-ए-वाबस्तगी को भूल गया
यानी तुम वो होवाकईहद है
मैं तो सचमुच सभी को भूल गया

रिश्ता-ए-दिल तेरे ज़माने में
रस्म ही क्या निबाहनी होती
मुस्कुराए हम उससे मिलते वक्त
रो न पड़ते अगर खुशी होती

दिल में जिनका निशान भी न रहा
क्यूं न चेहरों पे अब वो रंग खिलें
अब तो खाली है रूहजज़्बों से
अब भी क्या हम तपाक से न मिलें

शर्मदहशतझिझकपरेशानी
नाज़ से काम क्यों नहीं लेतीं
आपवोजीमगर ये सब क्या है
तुम मेरा नाम क्यों नहीं लेतीं

3. अब जुनू कब किसी के बस में है


अब जुनूँ कब किसी के बस में है
उसकी ख़ुशबू नफ़स-नफ़स में है

हाल उस सैद का सुनाईए क्या
जिसका सैयाद ख़ुद क़फ़स में है

क्या है गर ज़िन्दगी का बस न चला
ज़िन्दगी कब किसी के बस में है

ग़ैर से रहियो तू ज़रा होशियार
वो तेरे जिस्म की हवस में है

बाशिकस्ता बड़ा हुआ हूँ मगर
दिल किसी नग़्मा-ए-जरस में है

'जॉनहम सबकी दस्त-रस में है
वो भला किसकी दस्त-रस में है

4. आगे हँसते खूनी परचम


आगे असबे खूनी चादर और खूनी परचम निकले
जैसे निकला अपना जनाज़ा ऐसे जनाज़े कम निकले

दौर अपनी खुश-दर्दी रात बहुत ही याद आया
अब जो किताबे शौक निकाली सारे वरक बरहम निकले

है ज़राज़ी इस किस्से कीइस किस्से को खतम करो
क्या तुम निकले अपने घर सेअपने घर से हम निकले

मेरे कातिलमेरे मसिहामेरी तरहा लासनी है
हाथो मे तो खंजर चमकेजेबों से मरहम निकले

'जॉनशहादतजादा हूँ मैं और खूनी दिल निकला हूँ
मेरा जूनू उसके कूचे से कैसे बेमातम निकले

5. उम्र गुज़रेगी इंतहान में क्या


उम्र गुज़रेगी इम्तहान में क्या?
दाग ही देंगे मुझको दान में क्या?

मेरी हर बात बेअसर ही रही
नुक्स है कुछ मेरे बयान में क्या?


बोलते क्यो नहीं मेरे अपने
आबले पड़ गये ज़बान में क्या?

मुझको तो कोई टोकता भी नहीं
यही होता है खानदान मे क्या?

अपनी महरूमिया छुपाते है
हम गरीबो की आन-बान में क्या?

वो मिले तो ये पूछना है मुझे
अब भी हूँ मै तेरी अमान में क्या?


यूँ जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या?

है नसीम-ए-बहार गर्दालूद
खाक उड़ती है उस मकान में क्या

ये मुझे चैन क्यो नहीं पड़ता
एक ही शक्स था जहान में क्या?

6. एक ही मुश्दा सुभो लाती है


एक ही मुश्दा सुभो लाती है
ज़हन में धूप फैल जाती है

सोचता हूँ के तेरी याद आखिर
अब किसे रात भर जगाती है

फर्श पर कागज़ो से फिरते है
मेज़ पर गर्द जमती जाती है

मैं भी इज़न-ए-नवागरी चाहूँ
बेदिली भी तो नब्ज़ हिलाती है

आप अपने से हम सुखन रहना
हमनशी सांस फूल जाती है

आज एक बात तो बताओ मुझे
ज़िन्दगी ख्वाब क्यो दिखाती है

क्या सितम है कि अब तेरी सूरत
गौर करने पर याद आती है

कौन इस घर की देख भाल करे
रोज़ एक चीज़ टूट जाती है

7. एक हुनर है जो कर गया हूँ मैं


एक हुनर है जो कर गया हूँ मैं
सब के दिल से उतर गया हूँ मैं

कैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँ
सुन रहा हूँ के घर गया हूँ मैं

क्या बताऊँ के मर नहीं पाता
जीते जी जब से मर गया हूँ मैं

अब है बस अपना सामना दरपेश
हर किसी से गुज़र गया हूँ मैं

वो ही नाज़-ओ-अदावो ही ग़मज़े
सर-ब-सर आप पर गया हूँ मैं

अजब इल्ज़ाम हूँ ज़माने का
के यहाँ सब के सर गया हूँ मैं

कभी खुद तक पहुँच नहीं पाया
जब के वाँ उम्र भर गया हूँ मैं

तुम से जानां मिला हूँ जिस दिन से
बे-तरहखुद से डर गया हूँ मैं

कूजानां में सोग बरपा है
के अचानकसुधर गया हूँ मैं

8. कितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगे


कितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगे|
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे|

उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा,
यूँ ही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे|

बंद रहे जिन का दरवाज़ा ऐसे घरों की मत पूछो,
दीवारें गिर जाती होंगी आँगन रह जाते होंगे|

मेरी साँस उखड़ते ही सब बैन करेंगे रोएंगे,
यानी मेरे बाद भी यानी साँस लिये जाते होंगे|

यारो कुछ तो बात बताओ उस की क़यामत बाहों की,
वो जो सिमटते होंगे इन में वो तो मर जाते होंगे|

9. किसी लिबास की खुशबू


किसी लिबास की ख़ुशबू जब उड़ के आती है
तेरे बदन की जुदाई बहुत सताती है

तेरे बगैर मुझे चैन कैसे पड़ता है
मेरे बगैर तुझे नींद कैसे आती है

रिश्ता-ए-दिल तेरे ज़माने में
रस्म ही क्या निभानी होती

मुस्कुराए हम उससे मिलते वक्त
रो न पड़ते अगर खुशी होती

दिल में जिनका कोई निशाँ न रहा
क्यों न चेहरो पे वो रंग खिले

अब तो ख़ाली है रूह जज़्बों से
अब भी क्या तबाज़ से न मिले

10. कोई हालत नहीं ये हालत है


कोई हालत नहीं ये हालत है
ये तो आशोभना सूरत है

अन्जुमन में ये मेरी खामोशी
गुर्दबारी नहीं है वहशत है

तुझ से ये गाह-गाह का शिकवा
जब तलक है बस गनिमत है

ख्वाहिशें दिल का साथ छोड़ गईं
ये अज़ीयत बड़ी अज़ीयत है

लोग मसरूफ़ जानते हैं मुझे
या मेरा गम ही मेरी फुरसत है

तंज़ पैरा-या-ए-तबस्सुम में
इस तक्ल्लुफ़ की क्या ज़रूरत है

हमने देखा तो हमने ये देखा
जो नहीं है वो ख़ूबसूरत है

वार करने को जाँनिसार आए
ये तो इसार है इनायत है

गर्म-जोशी और इस कदर क्या बात
क्या तुम्हें मुझ से कुछ शिकायत है

अब निकल आओ अपने अन्दर से
घर में सामान की ज़रूरत है

आज का दिन भी ऐश से गुज़रा
सर से पाँव तक बदन सलामत है

11. क्या तकल्लुफ करे ये कहने में


उसके पहलू से लग के चलते हैं
हम कहाँ टालने से टलते हैं

मैं उसी तरह तो बहलता हूँ यारों
और जिस तरह बहलते हैं

वोह है जान अब हर एक महफ़िल की
हम भी अब घर से कम निकलते हैं

क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी खुश है हम उससे जलते हैं

है उसे दूर का सफ़र दरपेश
हम सँभाले नहीं सँभलते हैं

है अजब फ़ैसले का सहरा भी
चल न पड़िए तो पाँव जलते हैं

हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद
देखने वाले हाथ मलते हैं

तुम बनो रंगतुम बनो ख़ुशबू
हम तो अपने सुख़न में ढलते हैं

12. ख़ामोशी कह रही है कान में क्या


ख़ामोशी कह रही हैकान में क्या आ रहा है मेरेगुमान में क्या
अब मुझे कोईटोकता भी नहीं यही होता हैखानदान में क्या
बोलते क्यों नहींमेरे हक़ में आबले[1] पड़ गयेज़बान में क्या
मेरी हर बातबे-असर ही रही नुक़्स है कुछमेरे बयान में क्या
वो मिले तो येपूछना है मुझे अब भी हूँ मैं तेरीअमान में क्या
शाम ही सेदुकान-ए-दीद है बंद नहीं नुकसान तकदुकान में क्या
यूं जो तकता हैआसमान को तू कोई रहता हैआसमान में क्या
ये मुझे चैनक्यूँ नहीं पड़ता इक ही शख़्स थाजहान में क्या
शब्दार्थ:
  1.  छाले

13. ख़ुद से हम इक नफ़स हिले भी कहाँ


ख़ुद से हम इक नफ़स हिले भी कहाँ|
उस को ढूँढें तो वो मिले भी कहाँ|

ख़ेमा-ख़ेमा गुज़ार ले ये शब,
सुबह-दम ये क़ाफिले भी कहाँ|

अब त'मुल न कर दिल-ए- ख़ुदकाम,
रूठ ले फिर ये सिलसिले भी कहाँ|

आओ आपस में कुछ गिले कर लें,
वर्ना यूँ है के फिर गिले भी कहाँ|

ख़ुश हो सीने की इन ख़राशों पर,
फिर तनफ़्फ़ुस के ये सिले भी कहाँ|

14. चार सू मेहरबाँ है चौराहा


चार सू मेहरबाँ है चौराहा
अजनबी शहर अजनबी बाज़ार
मेरी तहवील में हैं समेटे चार
कोई रास्ता कहीं तो जाता है
चार सू मेहरबाँ है चौराहा

15. जब मैं तुम्हें निशात-ए-मुहब्बत न दे सका


जब मैं तुम्हें निशात-ए-मुहब्बत न दे सका|
ग़म में कभी सुकून-ए-रफ़ाक़त न दे सका|

जब मेरे सारे चराग़-ए-तमन्ना हवा के हैं|
जब मेरे सारे ख़्वाब किसी बेवफ़ा के हैं|

फिर मुझे चाहने का तुम्हें कोई हक़ नहीं|
तन्हा कराहाने का तुम्हें कोई हक़ नहीं|

16. जी ही जी में


1.
जी ही जी में वो जल रही होगी
चाँदनी में टहल रहीं होगी

चाँद ने तान ली है चादर-ए-अब्र
अब वो कपड़े बदल रही होगी

सो गई होगी वो शफ़क़ अन्दाम
सब्ज़ किन्दील जल रही होगी

सुर्ख और सब्ज़ वादियों की तरफ
वो मेरे साथ चल रही होगी

चढ़ते-चढ़ते किसी पहाड़ी पर
अब तो करवट बदल रही होगी

नील को झील नाक तक पहने
सन्दली जिस्म मल रही होगी

2.

गाहे-गाहे बस अब तही हो क्या
तुम से मिल कर बहुत खुशी हो क्या

मिल रही हो बड़े तपाक के साथ
मुझ को अक्सर भुला चुकी हो क्या

याद हैं अब भी अपने ख्वाब तुम्हें
मुझ से मिलकर उदास भी हो क्या

बस मुझे यूँ ही एक ख़याल आया
सोचती हो तो सोचती हो क्या

अब मेरी कोई ज़िन्दगी ही नहीं
अब भी तुम मेरी ज़िन्दगी हो क्या

क्या कहा इश्क जाबेदानी है
आखरी बार मिल रही हो क्या?

है फज़ा याँ की सोई-सोई सी
तुम बहुत तेज़ रोशनी हो क्या

मेरे सब तंज़ बेअसर ही रहे
तुम बहुत दूर जा चुकी हो क्या?

दिल में अब सोज़े-इंतज़ार नहीं
शम्मे उम्मीद बुझ गई हो क्या?

17. तुम जिस ज़मीन पर हो मैं



तुम जिस ज़मीन पर हो मैं उस का ख़ुदा नहीं
बस सर- ब-सर अज़ीयत-ओ-आज़ार ही रहो

बेज़ार हो गई हो बहुत ज़िन्दगी से तुम
जब बस में कुछ नहीं है तो बेज़ार ही रहो

तुम को यहाँ के साया-ए-परतौ से क्या ग़रज़
तुम अपने हक़ में बीच की दीवार ही रहो

मैं इब्तदा-ए-इश्क़ में बेमहर ही रहा
तुम इन्तहा-ए-इश्क़ का मियार ही रहो

तुम ख़ून थूकती हो ये सुन कर ख़ुशी हुई
इस रंग इस अदा में भी पुरकार ही रहो

मैंने ये कब कहा था के मुहब्बत में है नजात
मैंने ये कब कहा था के वफ़दार ही रहो

अपनी मता-ए-नाज़ लुटा कर मेरे लिये
बाज़ार-ए-इल्तफ़ात में नादार ही रहो

18. तुम हकीकत नहीं हो हसरत हो


तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो
जो मिले ख़्वाब में वो दौलत हो

तुम हो ख़ुशबू के ख़्वाब की ख़ुशबू
औए इतने ही बेमुरव्वत हो

तुम हो पहलू में पर क़रार नहीं
यानी ऐसा है जैसे फुरक़त हो

है मेरी आरज़ू के मेरे सिवा
तुम्हें सब शायरों से वहशत हो

किस तरह छोड़ दूँ तुम्हें जानाँ
तुम मेरी ज़िन्दगी की आदत हो

किसलिए देखते हो आईना
तुम तो ख़ुद से भी ख़ूबसूरत हो

दास्ताँ ख़त्म होने वाली है
तुम मेरी आख़िरी मुहब्बत हो

19. तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ यह कैसी तन्हाई है


तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ यह कैसी तन्हाई है
तेरे साथ तेरी याद आईक्या तू सचमुच आई है

शायद वो दिन पहला दिन था पलकें बोझल होने का
मुझ को देखते ही जब उन की अँगड़ाई शरमाई है

उस दिन पहली बार हुआ था मुझ को रफ़ाक़ात का एहसास
जब उस के मलबूस की ख़ुश्बू घर पहुँचाने आई है

हुस्न से अर्ज़ ए शौक़ न करना हुस्न को ज़ाक पहुँचाना है
हम ने अर्ज़ ए शौक़ न कर के हुस्न को ज़ाक पहुँचाई है

हम को और तो कुछ नहीं सूझा अलबत्ता उस के दिल में
सोज़ ए रक़बत पैदा कर के उस की नींद उड़ाई है

हम दोनों मिल कर भी दिलों की तन्हाई में भटकेंगे
पागल कुछ तो सोच यह तू ने कैसी शक्ल बनाई है

इश्क़ ए पैचान की संदल पर जाने किस दिन बेल चढ़े
क्यारी में पानी ठहरा है दीवारों पर काई है

हुस्न के जाने कितने चेहरे हुस्न के जाने कितने नाम
इश्क़ का पैशा हुस्न परस्ती इश्क़ बड़ा हरजाई है

आज बहुत दिन बाद मैं अपने कमरे तक आ निकला था
ज्यों ही दरवाज़ा खोला है उस की खुश्बू आई है

एक तो इतना हब्स है फिर मैं साँसें रोके बैठा हूँ
वीरानी ने झाड़ू दे के घर में धूल उड़ाई है

20. दिल ने वफ़ा के नाम पर कार-ए-जफ़ा नहीं किया


दिल ने वफ़ा के नाम पर कार-ए-जफ़ा नहीं किया
ख़ुद को हलाक कर लिया ख़ुद को फ़िदा नहीं किया

कैसे कहें के तुझ को भी हमसे है वास्ता कोई
तूने तो हमसे आज तक कोई गिला नहीं किया

तू भी किसी के बाब में अहद-शिकन हो ग़ालिबन
मैं ने भी एक शख़्स का क़र्ज़ अदा नहीं किया

जो भी हो तुम पे मौतरिज़ उस को यही जवाब दो
आप बहुत शरीफ़ हैं आप ने क्या नहीं किया

जिस को भी शेख़-ओ-शाह ने हुक्म-ए-ख़ुदा दिया क़रार
हमने नहीं किया वो काम हाँ बा-ख़ुदा नहीं किया

निस्बत-ए-इल्म है बहुत हाकिम-ए-वक़्त को अज़ीज़
उस ने तो कार-ए-जेहन भी बे-उलामा नहीं किया

21. बेदिली क्या यूँ ही दिल गुज़र


बेदिली! क्या यूँ ही दिन गुजर जायेंगे 
सिर्फ़ ज़िन्दा रहे हम तो मर जायेंगे
ये खराब आतियाने, खिरद बाख्ता
सुबह होते ही सब काम पर जायेंगे
कितने दिलकश हो तुम कितना दिलजूँ हूँ मैं 
क्या सितम है कि हम लोग मर जाएंगे 

22. महक उठा है आंगन इस खबर से


महक उठा है आँगन इस ख़बर से
वो ख़ुशबू लौट आई है सफ़र से

जुदाई ने उसे देखा सर-ए-बाम
दरीचे पर शफ़क़ के रंग बरसे

मैं इस दीवार पर चढ़ तो गया था
उतारे कौन अब दीवार पर से

गिला है एक गली से शहर-ए-दिल की
मैं लड़ता फिर रहा हूँ शहर भर से

उसे देखे ज़माने भर का ये चाँद
हमारी चाँदनी छाए तो तरसे

मेरे मानन गुज़रा कर मेरी जान
कभी तू खुद भी अपनी रहगुज़र से

23. मेरी अक्ल-ओ-होश की


मेरी अक्ल-ओ-होश की सब हालते
तुमने सांचे में ढाल दी
कर लिया था मैंने अहदे कर के इश्क
तुमने बाहे फिर गले में डाल दी

यू तो अपने कसदाने दिल के पास
जाने किस-किस के लिए पैगाम है
जो लिखे जाते औरो के नाम
मेरे वो खत भी तुम्हारे नाम है

ये तेरे खत तेरी खुशबू
ये तेरे ख्वाब-ओ-खयाल
मताए जा है तेरे
कसम की तरह

गुज़रता साल मैने
इनहे मैने गिन के रखा था
किसी गरीब की जोड़ी हुई
रकम की तरह

है मुहब्ब्त हयात की नज़र
वरना कुछ हज़्ज़त-ए-हयात नहीं
क्या इज़ाज़त है एक बात कहू
मगर खैर कोई बात नहीं

24. यह गम क्या दिल की आदत हैनहीं तो


यह गम क्या दिल की आदत हैनहीं तो
किसी से कुछ शिकायत हैनहीं तो

है वो इक ख्वाब-ए-बे ताबीर इसको
भुला देने की नीयत हैनहीं तो

किसी के बिन किसी की याद के बिन
जिए जाने की हिम्मत है ? नहीं तो

किसी सूरत भी दिल लगता नहींहाँ
तू कुछ दिन से यह हालत हैंनहीं तो

तेरे इस हाल पर हैं सब को हैरत
तुझे भी इस पर हैरत हैनहीं तो

वो दरवेशी जो तज कर आ गया.....तू
यह दौलत उस की क़ीमत हैनहीं तो

हुआ जो कुछ यही मक़्सूम था क्या
यही सारी हकायत है ? नहीं तो

अज़ीयत नाक उम्मीदों से तुझको
अमन पाने की हसरत हैनहीं तो

25. रूह प्यासी कहाँ से आती है


रूह प्यासी कहाँ से आती है
ये उदासी कहाँ से आती है

दिल है शब दो का तो ऐ उम्मीद
तू निदासी कहाँ से आती है

शौक में ऐशे वत्ल के हन्गाम
नाशिफासी कहाँ से आती है

एक ज़िन्दान-ए-बेदिली और शाम
ये सबासी कहाँ से आती है

तू है पहलू में फिर तेरी खुशबू
होके बासी कहाँ से आती है

26. लौ-ए-दिल जला दूँ क्या


लौ-ए-दिल जला दूँ क्या
कहकशाँ लुटा दू क्या
है सवाल इतना ही
इनका जो भी मुद्दा है
मैं उसे गवाँ दू क्या
जो भी हर्फ है इनका
नक्श-ए-जाँ ए जाना ना
नक्श-ए-जाँ मिटा दूँ क्या
मुझ को लिख के ख़त जानम
अपने ध्यान में शायद
ख़्वाब-ख़्वाब जज़्बों के
ख़्वाब-ख़्वाब लम्हों में
यूँ ही बेख़याल आना
और ख़याल आने पर
मुझ से डर गई हो तुम
जुर्म के तस्सवुर में
गर ये ख़त लिखे तुमने
फिर तो मेरी राय में
जुर्म ही किये तुमने
जुर्म क्यों किये जाएँ
जुर्म हो तो
ख़त ही क्यों लिखे जाएँ

28. सर ये फोड़िए


सर येह फोड़िए अब नदामत में
नीन्द आने लगी है फुरकत में

हैं दलीलें तेरे खिलाफ मगर
सोचता हूँ तेरी हिमायत में

इश्क को दरम्यान ना लाओ के मैं
चीखता हूँ बदन की उसरत में

ये कुछ आसान तो नहीं है कि हम
रूठते अब भी है मुर्रबत में

वो जो तामीर होने वाली थी
लग गई आग उस इमारत में

वो खला है कि सोचता हूँ मैं
उससे क्या गुफ्तगू हो खलबत में

ज़िन्दगी किस तरह बसर होगी
दिल नहीं लग रहा मुहब्बत में

मेरे कमरे का क्या बया कि यहाँ
खून थूका गया शरारत में

रूह ने इश्क का फरेब दिया
ज़िस्म को ज़िस्म की अदावत में

अब फकत आदतो की वर्जिश है
रूह शामिल नहीं शिकायत में

ऐ खुदा जो कही नहीं मौज़ूद
क्या लिखा है हमारी किस्मत में

29. हम के ए दिल सुखन सरापा थे


हम के ए दिल सुखन सरापा थे
हम लबो पे नहीं रहे आबाद

जाने क्या वाकया हुआ
क्यू लोग अपने अन्दर नहीं रहे आबाद

शहर-ए-दिन मे अज्ब मुहल्ले थे
उनमें अक्सर नहीं रहे आबाद

30. हम तो जैसे यहाँ के थे ही नहीं


हम तो जैसे यहाँ के थे ही नहीं|
धूप थे सायबाँ के थे ही नहीं|

रास्ते कारवाँ के साथ रहे,
मर्हले कारवाँ के थे ही नहीं|

अब हमारा मकान किस का है,
हम तो अपने मकाँ के थे ही नहीं|

इन को आँधि में ही बिखरना था,
बाल-ओ-पर यहाँ के थे ही नहीं|

उस गली ने ये सुन के सब्र किया,
जाने वाले यहाँ के थे ही नहीं|

हो तेरी ख़ाक-ए-आस्ताँ पे सलाम,
हम तेरे आस्ताँ के थे ही नहीं|

31. हमारे शौक के आंसू दो


हमारे शौक के आंसू दोखुशहाल होने तक
तुम्हारे आरज़ू केसो का सौदा हो चुका होगा

अब ये शोर-ए-हाव हूँ सुना है सारबानो ने
वो पागल काफिले की ज़िद में पीछे रह गया होगा

है निस-ए-शब वो दिवाना अभी तक घर नहीं आया
किसी से चन्दनी रातों का किस्सा छिड़ गया होगा

32. हर बार मेरे सामने आती रही हो तुम


हर बार मेरे सामने आती रही हो तुम,
हर बार तुम से मिल के बिछड़ता रहा हूँ मैं,

तुम कौन हो ये ख़ुद भी नहीं जानती हो तुम,
मैं कौन हूँ ये ख़ुद भी नहीं जानता हूँ मैं,

तुम मुझ को जान कर ही पड़ी हो आज़ाब में,
और इस तरह ख़ुद अपनी सज़ा बन गया हूँ मैं,

33. हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई


हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई
शौक़ में कुछ नहीं गया शौक़ की ज़िंदगी गई

एक ही हादसा तो है और वो यह के आज तक
बात नहीं कही गई बात नहीं सुनी गई

बाद भी तेरे जान-ए-जां दिल में रहा अजब समाँ
याद रही तेरी यां फिर तेरी याद भी गई

सैने ख्याल-ए-यार में की ना बसर शब्-ए-फिराक
जबसे वो चांदना गया तबसे वो चांदनी गयी

उसके बदन को दी नुमूद हमने सुखन में और फिर
उसके बदन के वास्ते एक कबा भी सी गयी

उसके उम्मीदे नाज़ का हमसे ये मान था की आप
उम्र गुज़ार दीजियेउम्र गुज़ार दी गयी

उसके विसाल के लिए अपने कमाल के लिए
हालत-ए-दिल की थी खराब और खराब की गई

तेरा फिराक़ जान-ए-जां ऐश था क्या मेरे लिए
यानी तेरे फिराक़ में खूब शराब पी गई

उसकी गली से उठके मैं आन पड़ा था अपने घर
एक गली की बात थी और गली गली गयी

उसके पहलू से लग के चलते हैं / जॉन एलिया

उसके पहलू से लग के चलते हैं
हम कहीं टालने से टलते हैं

मै उसी तरह तो बहलता हूँ
और सब जिस तरह बहलतें हैं

वो है जान अब हर एक महफ़िल की
हम भी अब घर से कम निकलते हैं

क्या तकल्लुफ्फ़ करें ये कहने में
जो भी खुश है हम उससे जलते हैं
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और तो कुछ नहीं किया मैंने 
अपनी हालत ख़राब कर ली हैं
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Mujhe Tum Apni BaahoN mein jakarh lo aur Main
tumko...!!!
Yahaa'n Ab Teesra koi nahi Ya'ani Mohabbat bhi...¡¡¡
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Woh Jo Tha Us Ko Mila Kya Mujh Sey...!!!
Us Ko To Khawab Hi Samjha Maine...!!!
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Tu Merey Baad Rakhey Ga Mujhey Yaad...???
Main Apne Baad Ik Lamha Na Chahon...!!!
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Jo Naam Pey Tere Mar Chukey Hain...!!!
Kambakht...! Yeh Phir Jiyengey Mar Ker...!!!
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Naubat.. Awaargi Takk Aa Puhanchi...!!!
Har Gali Se.. Guzar Raha Hun Abb...!!!
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Baaz Aa Jaayiye Ke Sab Fitney...
Aap Ki KYUN Ke Aur KYA Ke Hain...!
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Tujhse Mujhko Najaat Mil Jaye 
Tu Dua Kar Ke Ho Bhala Mera..
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Aur Phir Wo Daur bhi Aaya ke Tum Ukta Gayee
Apni hadd Sey Barh Gayee Theen, Apni hadd mein Aa gayee..
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Saj Ke Woh Kaisa Laga Hoga Jo Tha,
Ek Khwaab E Shayeraana Fareha...
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Qaabil e reham hain vo deewaane
Jinko haansil nahi hai weeraane

Hum halaak e sitam nahi, aye dost!
Hum ko maara hai lutf e beja ne

Jinka unwaan ban gayi vo nazar
Kitne rangeen hai vo afsaane

Main to is zindagi se rutha hoon
Aap kyu.n aa rahe hain samjhaane

Mere mehroomi.on ka gham hai unhe
Chhalak uthe.n kahi na paymaane

Kushta e etmaad hai hum log
Hum ko dhoka diya hai duniyaa ne

Talkh go mukhleeso.n ki mehfil mein
'Jaun' kis baat ka buraa maane..

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Jhoot sach k khel mein halkaan hain
Khoob hain ye larkiyaan bechaariyaan...

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Lamhe Lamhe ki Naar'saae Hai,
Zindagi Halat-e-Judaai Hai..
Ek Ajab Haal Hai ke Ab Us ko,
Yaad Karna Bhi Bewafai Hai..

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kuchh bhi..... kiyaa ho humne...... kahin bhi .......gaye hon hum;
had se tumhaari yaad ki........ baahar..... gaye hain kyaa?.....

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Ab Main Samjha Hoon Baykasi Kya Hai
Ab Tumhein Bhi Mera Khayal Nahin,
Haye! Ye Ishq Ka Zawal Ke Ab,
Hijr Mein Hijr Ka Malaal Nahin..

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Zamaana tha who dil ki zindagi ka
Teri furqat ke din laoon kahaan se...

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Har lamha jee rahe hain dawaa kay baghair hum
charagaro tumhaari dua chahiye humeN..

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Zindagi Ki Anjuman ka bas Yahee Dastoor hai
Barh ke Miliye aur Mil ke Door Hotay Jaiye...

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Hai Ajab Us Ka Haal-e-Hijr Kai Hum
Gahey Gahey Sanwartey Rehte Hain...

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Tu qayamat ka bey murawwat hai..
Main tera hamnasheen nahin hota ...

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Jaana Nahin Hai Ghar Sey Nikal Kar Kahin, Magar
Har Maah e Rooh Ke Ghar Ka Pata Chahiyein Hamein...

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Rona to yehi hai, zindagi mein
Dhoka hi to bas na kha sake hum..

Jo haasil-e-waqea hai, yeh hai
Bas khud mein nahi sama sake hum..

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Deed Hairaan Us Gali Me.n Hai
Kya Ajab Shaan Us Gali Me.n Hai

Baat Me.n Jaan Se Guzar Jana
Kitna Aasaan Us Gali Me.n Hai

Aur Ek Baar Mujh Ko Jaaney Do
Saaraa Saamaan Us Gali Me.n Hai

Kia Khabar In Mehal Nasheenon Ko
Apni Jo Aan Us Gali Me.n Hai

Kyaa Bataoon Hai Kya Woh Jaan Gali
Meri To Jaan Us Gali Me.n Hai

Main Kahin Bhi Rahon, Kahin Jaon
Dil Ka Reethan Us Gali Me.n Hai

Wohi Deewar O’ Dar, Woh Mera Ghar
Wohi Daalaan Us Gali Me.n Hai

Main Jo Kafir Hon Us Gali Baher
Mera Emaan Us Gali Me.n Hai

Us Gali Par Hon Jaan Se Qurban
Meri Pehchan Us Gali Me.n Hai...

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ko'ee ta'alluq he na rahay...
jab k sabab bhi baqee ho...
kia men ab bhi zinda hoon...
kia tum ab bhi baaqee ho?

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Usee mei ho chuka,ab kia na chahoon
Saza honey ki hai, hona na chahoon

Tu merey baad rakhey ga mujhey yaad
Main apney baad ik lamha na chahoon

Jidhar dekho udhar bey pardagi hai
Kidhar dekhoon k main parda na chahoon

Jahaan-e-deed mein naayaab ho ja
Meri jaan ! main tujhey bichra na chahoon

Hain sab rastey pasheimaani k rastey
Main chalta jaaon,par rasta na chahoon

Na koi chaap zinda hai, na dastak
To kia main ghar mein darwaaza na chahoon

Hai ab to saamney tera ik amboh
Bhala ab kyun tera aana na chahoon

Khayaalen kitne hain yeh shab ke andaaz
Kahin main koi andaaza na chahoon

Wo beytha hai dareechey band kar ke
Main deewaaron ko bey parwa na chahoon

Jo boley jaao to rishtey sunenge
So kia chahoon jo chup rehna na chahoon

Sukhan ki maut hai yaaro sukhan beech
Main bastee mein koi lab waa na chahoon

Jo agley pal talak jeena hua tab
Bhala kaise koi waada na chahoon

Na kyu cheekhoon k hai ik shor barpa
Bhala main, aur sannaata na chahoon ?

Chala hontoon sey marghola dhuwein ka
Theher jaa, main abhi marna na chahoon

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Hai Zaroorat Bahut Tawajjo ki
Yaad Aao to Kam Na Yaad Aaao
Chahiye Mujhko Jaan-0-Dil ka Sukoon
Mere Haq Mein Azaab Ban Jaao...

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Kis Ko Fursat Ha Key Mujh Se Behas Karey
Aur Saabit Kare Ke Mera Wajood
Zindagi Key Liye Zaroori Hai…

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Dil ki takleef kam nahi karte
ab koi shikwa hum nahi karte

jaan e jaa.n tujh ko ab teri khaatir
yaad hum koyii dam nahi karte

jurm mein hum kamii karein bhi to kyun
tum saza bhi to kam nahi karte..

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Tum Mera Dukh Bant Rahi Ho, Main Dil Mein Sharminda Ho
Apne Jhootay Dukh Say Tumko Kab Tak Dukh Pohchaonga

Tum Tu Wafao Mein Sargadaa Ho, Shauq Mein Raqsa Rehti Ho
Mujhko Zawaal-E- Shauq Ka Ghum Hai Main Pagal Ho jaunga

Ahad-E-Rafaqat Theek Hai Lekin Mujhko Aisa Lagta Hai
Tum Tu Meray Sath Rahogi Main Tanha Reh jaaunga

Shaam Ko Aksar Bethay Bethay Dil Kuch Doobnay Lagta Hai
Tum Mujhko Itna Mat Chaho Main Shayad Mar Jaonga

Ishq Kisi Manzil Per Aakar Itna Bhi Befikar Na Ho
Ab Bister Per Letunga Main, Aur Let'tay Hi So Jaonga...

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Zindagi Ki Dhoop Mein Murjhaa Gaya Mera Shabaab
Ab Bahaar Aayi To Kya, Abr-E-Bahaar Aaya To Kya...

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Halat Ye Hai k Gerdish e Halaat k Sabab,
Dil Bhi Mera Tabaah Hai Himmat Bhi Past Hai,

Tum Sochti Bahut Ho To Ye Bhi Sochna,
Meri Shikast Asl Mein Kiski Shikast Hai?

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Meena ba Meena, May ba May, Jaam ba Jaam, Jam ba Jam..
Naaf Pyaaley Ki Tere, Yaad Ajab Sahi Gayee...

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Ajab ik shor sa barpa hai kahin,
koi khamosh ho gaya hai kahin,

hai kuch aisa k jaise ye sab kuch,
ab se pehle bhi ho chuka hai kahin,

jo yahan se kahin na jata tha,
wo yahan se chala gaya hai kahin,

tujh ko kya ho gaya k cheezon ko ,
kahin rakhta hai dhoondhta hai kahin,

tu mujhe dhoondh main tujhe dhoondhon,
koi hum main se reh gaya hai kahin,

ise kamre se ho k koi wida,
ise kamre mein chhup gaya hai kahin...

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Zikr bhi us say kya bhala mera,
Us say rishta hi kya raha mera..?

Aaj mujh ko bahut bura keh kar,
Aap ne naam to liya mera..

Aakhri baat tum say kehna hai,
Yaad rakhna na tum kaha mera..

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baras guzaray tumhein soye hue
uth jao, sunti ho, ab uth jao
main aaya hoon..
main andazay say samjha hoon
yahaan soyi hui ho tum
yahaan, roo' e zameen ke is muqaam e asmaani tar ke had mein

baad haa 'e tund nay
meray liye bas ik andaza hi chora hai..

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Chaand ki pighli hui chaandi mein,
Aao kuch rang e sukhan gholenge..
Tum humse nahi bolti ho mat bolo,
Hum bhi ab tumse nahi bolenge..

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baRa eHsaan ham farma rahe haiN
ke unke khat unheiN lauTa rahe haiN

naheeN tark-e-moHabbat par voh raazi
qayaamat hai ke ham samjhaa rahe haiN

yaqeeN ka raasta tai karne vaale
bohot taizee se vaapas aa rahe haiN

yeh mat bhoolo ke yeh lamHaat ham ko
bichhaRne ke liye milvaa rahe haiN

ta'ajub hai ke ishq-o-aashiqi se
abhi kuch log dhoka khaa rahe haiN

tumheiN chaaheiN ge jab chhin jaao gi tum
abhi ham tumko arzaaN paa rahe haiN

kisi soorat unheiN nafrat ho ham se
ham apne aib khud ginvaa rahe haiN

voh paagal mast hai apni vafaa meiN
meri aankhoN meiN aansoo aa rahe haiN

daleeloN se usse qaa'il kiya tha
daleeleiN de ke ab pachhtaa rahe haiN

tiri baanhoN se hijrat karne vaale
nayi maaHaul meiN ghabra rahe haiN

yeh jazba-e-ishq hai ya jazba-e-reHm?
tire aansoo mujhe rulvaa rahe haiN

ajab kuchch rabt hai tum se ke tumko
ham apnaa jaan kar Thukraa rahe haiN

vafaa ki yaadgaareiN tak na hoN gi
miri jaaN bas koi din jaa rahe haiN..

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Kia mein aangan mein chhor dun sona
jee jalaegi chaandni kab tak...............

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Janey kin kay chehrey hain......
bey-chashm o abru mujh mein

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Hun shahron shahron awara' tum janey kis shahar mein ho
mein phirta hun maara maara' tum janey kis shahar mein ho

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Hijr ki nazar tau deni hai usay
sochta hun keh bhula dun us ko

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Yeh jo sannata hai sarey shahar mein
kia naya janjaal hai' poocho khabar...!

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Hain bey-taur yeh loag tamaam...un k saanchey mein na dhalo...mein bhi yahan se bhaag chalun...tum bhi yahan se bhaag chalo...
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Sab karo apnay apnay kaam keh mein
dukh uthata hoon apni fursat kay........

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Uray jatey hain dhool kay manand
aandhyon par sawar thay hum tau

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Khud ko mein sab aankhon mein
dhundla dhundla lagta hoon.......

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Dil ko ik baat keh sunani hai
saari duniya faqat kahani hai

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Khwab ki shab ka hun mein he tau bas ik khush-guftar
khwab kay shahar mein khamosh' merey saath raho...!

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mUjay cHahtY Ho tuM phr b nAzar anDaaz krTy h0
iS fuN-e-aDakAri mAIN teRA usTAd kAun hA!...

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Wasl o firaaq kya bhala, waqt to seh liya gaya...!!!
Uski guzar to ho gayi, meri basar to ho gayi...!!!

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kuch bhi hua per Apne saath Apni Guzar to ho
gayi...!!!
chaahe kisi tarah huyi, UMR Basar to ho gayi...!!!

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Aap ney Mujh ko Theek pahchana...!!!
Sakht Bey wafa huN MAIN...!!!

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Mere MizgaaN ko Rang ki thi Hawas...!!!
Khoon mein Tar-ba-Tar gaye mere Din...!!!

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Us key HontoN pey rakh ke HONT Apne...❥
baat hee Hum Tamaam ker rahe hain...❥

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Aaj main khud sey ho gaya Maayoos...
aaj ik Yaar mar gaya Mera...!!!

koi Mujh tak pahonch NahiN sakta...
kitna aasaan hai Pata mera...!!!

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Shikwa yeh hai ke WOH bhi Woh nikla...!!!
hai Nadaamat ke HUM bhi Hum nikley...!!!

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Rootha Tha Tujh Sey Yaani Khud Apni Khushi Sey
Mein...!!!
Phir Us key Baad Jaan Na Rootha Kisi Sey Main...!!!

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 majburi-e-firaaq ka shikwa nhe bjaa.............
khud py na ho yaqeen, to muhabbat na keejiye....!!!

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kisi Surat bhi Dil lagta nahiN? Haan...!!!
to kuch Din sey yeh Haalat hai? Nahi To...!!!

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bahot Udaas huN MAIN Gham sada nahiN rehta...!!!
bahot Udaas huN main Zakhm bharney lagte hain...!!!

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Aisey HaaloN mein jab ke Hosh na ho...!!!
yeh meri HoshiyariaN Kiya hain...........

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Main Tumhare hee dum sey Zinda hun...!!!
mar hee jauN jo Tumse Fursat ho...!!!

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apne sab Yaar KAAM ker rahe hain...!!!
aur Hum hain ke NAAM ker rahe hai...!!!

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Hawas ka Mujh mein ik Dozakh tha lekin...!!!
Shab-e-Awwal MAIN bilkul SARD nikla...!!!

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Hum koi Bad Mu'aamla to nahiN...!!!
Zakhm khaate hain Zahar ugaltey hain...!!!

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Shab Jo Hum Se Hua Muaaf Karo...!!!
Nahi Pee Thi ..... Behak Gaye Honge...!!!

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Ajab Kuch Rabt Hai Tum Sey K Tum Ko ...
Hum Apna Jaan Kar Thukra Rahey Hein...

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Ajeeb hai meri Fitrat ke aaj hee maslan...!!!
Mujhe Sukoon mila hai Tere Naa Aane se...!!!

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jo Zindagi bachi hai usey mat Ganwaayiye...!!!
behtar yeh hai ke Aap mujhe Bhool jaayiye...!!!

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Hargiz mere huzoor kabhi Aayiye na aap...!!!
aur aayiye agar, to Khuda ban ke aayiye...!!!

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Ajeeb hai meri Fitrat ke aaj hee maslan...!!!
Mujhe Sukoon mila hai Tere Naa Aane se...!!!

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yeh mera Josh e Mohabbat faqat Ebaarat hai,
Tumhari Champayi RAANO ko Noch khaane sey...!!!

Muhazzab aadmi Patloon ke Button to laga,
ke Irtaqa hai Ebaarat Button lagaane sey...!!!

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Na koi haal-e-dil tha aur na koi haalat-e-jaan thi..!!!
Humein ussey, usey hum se, mohabbat ho gayi akhir..!!!

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TU woh Badan hai jis mein JAAN, Aaj laga hai JEE Mera...!¡!
JEE to kahin laga Tera, Sun, Tera jee laga nahi'n...!¡!

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Apne sabhi Giley baja, per hai yahi ke dilruba...!!!
Mera Tera mu'aamla Ishq ke bus ka tha Nahi'n...!¡!

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Us Ney Goya Mujhi Ko Yaad Rakha...!!!
Main Bhi Goya Usi Ko Bhool Gaya...!!!

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Koi Batao Ke Aakhir Yeh Maajra Kya Hai...?
Woh Jaan-e-Jaa'n Tha Magar, Hum To Ab Bhi Jeetey Hain...!!!

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Yaar ! dil to balaa ka thaa ayyaash...!!!
Is ney kis tarah khud kushi ker lee...???

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Woh Pagal Masst hai Apni WAFA mein...!!!
Meri Aankhon mein Aansu aa rahe hain...!!!

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Roya hun to apne Dosto'n mein..!!!
per Tujhse to Hans ke hee mila hun...!!!

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Main kud nahi hun koi aur hai Mere andar...!!!
jo Tumko ab bhi Tarasta hai, ab bhi aa jaao...!!!

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Shaam huyi hai Yaar aaye hain Yaaro'n ke
Humraah chale'n...!!!
Aaj wahan QAWWALI hogi JOHN chalo
DARGAAH chale'n...!!!

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Waaqayi Tujh Pey
Marnaa Chahta Hun...!!!

Yaa Ke Baatein Banaa
Raha Hun Main...!!!

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Tu Bhi Aey Shakhs Kya Kare
Aakhir...!!!
Mujh Ko Sar Phodne Ki Aadat
Hai...!!!

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11 comments:

  1. वाह वाह बहुत शानदार

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  2. https://www.shayarizone.com/2019/09/zindgi-sad-shayari-shayari-on-life.html

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    1. https://www.shayarizone.com/2019/09/zindgi-sad-shayari-shayari-on-life.html

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  3. Masaha Allah very nice jhonelia sahib bahut khub lajawab

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  4. थोड़ा फुर्सत में पढ़ना होगा इसे , यह तो एक पूरी किताब बन गयी है

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  5. Discover a wide range of high-quality Panchgavya and Panchgavya Aayurvedic , Cosmetic, Gomay, FMCG Product online in India at Deendayalkamdhenu, Shop Now! Gomay,cosmetic,fmcg Product.

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