बहादुरशाह जफर
अंतिम मुगल शासक और जाने-माने शायर बहादुरशाह जफर का जन्म 1775 में हुआ था। जफर उनका तखल्लुस था, जिसका मतलब होता है विजय। इसी नाम से उन्होंने तमाम .गालें लिखीं। 1857 की क्रांति उन्हीं के शासन में हुई थी। माना जाता है कि इसी क्रांति के दौरान उनकी काफी रचनाएं नष्ट हो गई थीं। 1862 में 87 साल की उम्र में उनका इंतकाल हो गया।
हिंदियों में बू रहेगी, जब तलक ईमान की
तख्त-ए-लंदन पर चलेगी, तेग हिन्दुस्तान की।
* तेग : तलवार
जलाया यार ने ऐसा, कि हम वतन से चले
बतौर शमा के रोते, इस अंजुमन से चले।
न किसी की आंख का नूर हूं, न किसी के दिल का .करार हूं
जो किसी के काम न आ सके, मैं वो एक मुश्त-ए-.गुबार हूं।
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहां है दिल-ए-दा.गदार में।
न मालो हु.कूमत न धन जाएगा
तेरे साथ बस एक कफन जाएगा।
उम्र-ए-दराज मांग कर लाए थे चार दिन
दो आरजू में कट गए, दो इंतजार में।
हमने दुनिया में आकर क्या देखा
देखा जो कुछ सो ख्वाब सा देखा।
कीजिए न दस में बैठकर आपस की बातचीत
पहुंचती दस हजार जगह दस की बातचीत।
हर बात में उसकी गर्मी है, हर नाज में उसके शोखी है।
आमद है .कयामत चाल भरी, चलने की फड़क फिर वैसी है।
सुबह रो-रो के शाम होती है
शब तड़प के तमाम होती है।
कितना है बदनसीब 'जफर' दफ्न के लिए
दो गज जमीन भी न मिली कू-ए-यार में।
खुलता नहीं है हाल, किसी पर कहे ब.गैर
पर दिल की जान लेते हैं, दिलबर कहे ब.गैर।
क्या ताब क्या मशाल हमारी कि बोसा लें
लब को तुम्हारे लब से मिलाकर कहे बगैर।
ताब : ताकत
बात करनी मुझे मुश्किल, कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तेरी महफिल, कभी ऐसी तो न थी।
मुलक की मिट्टी की चादर कहां?
जफर तू तो अब बे वतन जाएगा।
देखते हैं ख्वाब में जिस दिन किसू की चश्म-ए-मस्त
रहते हैं हम दो जहां से बेखबर दो दिन तलक
किसू : कोई
चश्म ए मस्त : मदमस्त आंखें
अंतिम मुगल शासक और जाने-माने शायर बहादुरशाह जफर का जन्म 1775 में हुआ था। जफर उनका तखल्लुस था, जिसका मतलब होता है विजय। इसी नाम से उन्होंने तमाम .गालें लिखीं। 1857 की क्रांति उन्हीं के शासन में हुई थी। माना जाता है कि इसी क्रांति के दौरान उनकी काफी रचनाएं नष्ट हो गई थीं। 1862 में 87 साल की उम्र में उनका इंतकाल हो गया।
हिंदियों में बू रहेगी, जब तलक ईमान की
तख्त-ए-लंदन पर चलेगी, तेग हिन्दुस्तान की।
जलाया यार ने ऐसा, कि हम वतन से चले
बतौर शमा के रोते, इस अंजुमन से चले।
न किसी की आंख का नूर हूं, न किसी के दिल का .करार हूं
जो किसी के काम न आ सके, मैं वो एक मुश्त-ए-.गुबार हूं।
कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहां है दिल-ए-दा.गदार में।
न मालो हु.कूमत न धन जाएगा
तेरे साथ बस एक कफन जाएगा।
उम्र-ए-दराज मांग कर लाए थे चार दिन
दो आरजू में कट गए, दो इंतजार में।
हमने दुनिया में आकर क्या देखा
देखा जो कुछ सो ख्वाब सा देखा।
कीजिए न दस में बैठकर आपस की बातचीत
पहुंचती दस हजार जगह दस की बातचीत।
हर बात में उसकी गर्मी है, हर नाज में उसके शोखी है।
आमद है .कयामत चाल भरी, चलने की फड़क फिर वैसी है।
सुबह रो-रो के शाम होती है
शब तड़प के तमाम होती है।
कितना है बदनसीब 'जफर' दफ्न के लिए
दो गज जमीन भी न मिली कू-ए-यार में।
खुलता नहीं है हाल, किसी पर कहे ब.गैर
पर दिल की जान लेते हैं, दिलबर कहे ब.गैर।
क्या ताब क्या मशाल हमारी कि बोसा लें
लब को तुम्हारे लब से मिलाकर कहे बगैर।
ताब : ताकत
बात करनी मुझे मुश्किल, कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तेरी महफिल, कभी ऐसी तो न थी।
मुलक की मिट्टी की चादर कहां?
जफर तू तो अब बे वतन जाएगा।
देखते हैं ख्वाब में जिस दिन किसू की चश्म-ए-मस्त
रहते हैं हम दो जहां से बेखबर दो दिन तलक
किसू : कोई
चश्म ए मस्त : मदमस्त आंखें