पहली नजर भी आपकी, उफ़! किस बला की थी
हम आज तक वह चोट हैं, दिल पर लिए हुए
जीना भी आ गया, मुझे मरना भी आ गया
पहिचानने लगा हूं, तुम्हारी नजर को मैं
अगर ख़ामोश रहूं मैं, तो तू ही सब कुछ है
जो कुछ कहा तो तेरा, हुस्न हो गया महदूद
(महदूद = सीमित)
यह भी फ़रेब से हैं, कुछ दर्द-ए-आशिक़ी के
हम मरके क्या करेंगे, क्या कर लिया है जीके?
बारेअलम उठाया, रंगेनिशात देखा
आए नहीं हैं यूं ही, अंदाज़ बेहिसी के
(बारेअलम = दुख का बोझ , रंगेनिशात = समृद्धि के अनुभव, बेहिसी = बेहोशी)
वे इश्क़ की आमत से, शायद नहीं वाक़फ हैं
सौ हुस्न करूं पैदा, एक-एक तमन्ना से
(आमत = महानता)
सौ बार तेरा दामन, हाथों में मेरे आया
जब आंख खुली देखा, अपना ही गिरेबां है
दास्तां उनकी आदाओं की है रंगीं, लेकिन
उसमें कुछ खून-ए-तमन्ना भी है शामिल मेरा
ऐ काश! मैं हक़ीक़त-ए-हस्ती न जानता
अब लुत्फ़-ए-ख़्वाब भी नहीं अहसास-ए-ख़्वाब में
ख़स्तगी ने कर दिया उसको रग-ए-जां से क़रीब
जुस्तजू ज़ालिम कहे जाती थी, मंजिल दूर नहीं
(जुस्तजू = तलाश)
उभरना हो जहां, जी चाहता है डूब मरने को
जहां उठती हो मौजें, हम वहां साहिल समझते हैं
(साहिल = लहर)
सुनता हूं बड़े ग़ौर से अफ़सान-ए-हस्ती
कुछ ख़्वाब हैं, कुछ अस्ल है, कुछ तर्ज-ए-अदा है
आलम की फ़जा पूछो, महरूम-ए-तमन्ना से
बैठा हुआ दुनिया में, उठ जाए जो दुनिया से
(महरूम-ए-तमन्ना = इच्छावंचित)
चला जाता हूं हंसता-खेलता, मौज-ए-हवादिस से
अगर आसानियां हो, ज़िंदगी दुश्वार हो जाए
(हवादिस = मुसीबतें)
हम आज तक वह चोट हैं, दिल पर लिए हुए
पहिचानने लगा हूं, तुम्हारी नजर को मैं
अगर ख़ामोश रहूं मैं, तो तू ही सब कुछ है
जो कुछ कहा तो तेरा, हुस्न हो गया महदूद
(महदूद = सीमित)
यह भी फ़रेब से हैं, कुछ दर्द-ए-आशिक़ी के
हम मरके क्या करेंगे, क्या कर लिया है जीके?
बारेअलम उठाया, रंगेनिशात देखा
आए नहीं हैं यूं ही, अंदाज़ बेहिसी के
(बारेअलम = दुख का बोझ , रंगेनिशात = समृद्धि के अनुभव, बेहिसी = बेहोशी)
वे इश्क़ की आमत से, शायद नहीं वाक़फ हैं
सौ हुस्न करूं पैदा, एक-एक तमन्ना से
(आमत = महानता)
सौ बार तेरा दामन, हाथों में मेरे आया
जब आंख खुली देखा, अपना ही गिरेबां है
दास्तां उनकी आदाओं की है रंगीं, लेकिन
उसमें कुछ खून-ए-तमन्ना भी है शामिल मेरा
ऐ काश! मैं हक़ीक़त-ए-हस्ती न जानता
अब लुत्फ़-ए-ख़्वाब भी नहीं अहसास-ए-ख़्वाब में
ख़स्तगी ने कर दिया उसको रग-ए-जां से क़रीब
जुस्तजू ज़ालिम कहे जाती थी, मंजिल दूर नहीं
(जुस्तजू = तलाश)
उभरना हो जहां, जी चाहता है डूब मरने को
जहां उठती हो मौजें, हम वहां साहिल समझते हैं
(साहिल = लहर)
सुनता हूं बड़े ग़ौर से अफ़सान-ए-हस्ती
कुछ ख़्वाब हैं, कुछ अस्ल है, कुछ तर्ज-ए-अदा है
आलम की फ़जा पूछो, महरूम-ए-तमन्ना से
बैठा हुआ दुनिया में, उठ जाए जो दुनिया से
(महरूम-ए-तमन्ना = इच्छावंचित)
चला जाता हूं हंसता-खेलता, मौज-ए-हवादिस से
अगर आसानियां हो, ज़िंदगी दुश्वार हो जाए
(हवादिस = मुसीबतें)
साहिल का मतलब लहर नहीं, किनारा है ।
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