Sunday, 21 July 2013

शकील बदायूंनी



तेरे बगैर अजब दिल का आलम है
चराग सैकड़ों जलते हैं रोशनी कम है।

शकील दिल का हूं तरामा, मुहब्बतों का हूं रादां
मुझे फख्र है मेरी शायरी मेरी जिंदगी से जुदा नहीं।

ये फलक-फलक हवाएं, ये झुकी-झुकी घटाएं
वो नार भी क्या नार है जो ना समझ ले इशारा ।

(.फलक = आसमान)

इश्क का कोई खैरख्वाह तो है
तू नहीं है तेरी निगाह तो है

(खैर.ख्वाह = परवाह करने वाला)

अब इससे यादा और हंसीं ये प्यार का मौसम क्या होगा
जब रात है ऐसी मतवाली फिर सुबह का आलम क्या होगा।

आई है वो बहार के नग्मे उबल पड़े
ऐसी खुशी है कि आंसू निकल पड़े।

क्या कीजिए शिकवा दूरी का मिलना भी गाब हो जाता है,
जब सामने वो आ जाते हैं अहसासे-अदब हो जाता है।

(अहसासे-अदब = शिष्ट-भावना)

कोई आरजू नहीं है कोई मुद्दा नहीं है,
तेरा गम रहे सलामत मेरे दिल में क्या नहीं है।

चौदवीं का चांद हो या आफताब हो
जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो।

(आफताब = सूर्य)

ये दाग दाग की खातिर मिटा के छोड़ेंगे,
नए अदब को .फसाना बना के छोड़ेंगे।

मेरी बर्बादी को चश्मे मोतबर से देखिये
मीर का दीवान., गालिब की नार से देखिये।

(मोतबर : विश्वसनीय)

अल्लाह तो सबकी सुनता है, जुर्रत है शकील अपनी-अपनी,
'हाली' ने जुबां से कुछ न कहा 'इकबाल' शिकायत कर बैठे।

लब हर्फे-तकल्लुम है तो नारें हैं कहीं और,
इन बातों से होता है मुहब्बत का य.कीं और।

(हर्फे-तकल्लुम = वाणी का हर अक्षर)

नग्मों से बरसती है मस्ती, छलके हैं खुशी के पैमाने
आज ऐसी बहारें आई हैं, कल जिनके बनेंगे अफसाने

No comments:

Post a Comment