Sunday, 21 July 2013

नरेशकुमारशाद

नरेशकुमारशाद ने एकदम आम भाषा में जो ग़जल लिखीं,वे बहुत लोकप्रिय हुईं। लेकिन क़ता और रुवाइयां उनकी खासियतें थीं। शाद एक पत्रकार भी थे और 'चंदन'के सह संपादक रहे। मुजफ्फरनगर के नजदीक याहयापुर में 27 नवंबर (मंगलवार को जन्मदिन) 1927 कोपैदा हुए शाद की बहुत ज्यादा शराब पीने के कारण 1969 में केवल 42 साल की उम्र में मौत हो गई।

मैंनेहरगमखुशीमेंढालाहै,
मेराहरचलननिरालाहै
लोगजिनहादसोंसेमरतेहैं,
मुझकोउनहादसोंनेपालाहै।

हर कली मस्ते खब हो जाती,
पत्ती-पत्ती गुलाब हो जाती
तूने डाली  मैं-फशां नज़रें
वरना शबनम शराब हो जाती
(मैं-फशांनशीलीशबनमः ओस की बूंद)

जिंदगीअपनेआईनेमेंतुझे
अपनाचेहरानारनहींआता
जुल्मकरनातोतेरीआदतहै
जुल्मसहनामगरनहींभाता

तूने तो जिस्म ही को बेचा है
एक फाके को टालने के लिए
लोग यज़दां  बेच देते हैं
अपना मतलब निकालने के लिए
(यजदांखुदा)

दीवारक्यागिरीमेरेकच्चेमकानकी,
लोगोंनेमेरेसहनसेरस्तेबनालिए।
(सहनआँगन)

करम ऐसे किये हैं दोस्तों ने कि
हर दुश्मन पै यार आने लगा है।

हरहसींकाफिरांकेमाथेपर
अपनीरहमतकाताजरखताहै
तूभीपरवरदिगारमेरीतरह
आशिकानामिज़ाजरखताहै
(हसींकाफिरांबहुतसुन्दरपरवरदिगारईश्वर)

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