Sunday, 21 July 2013

जोश मलीहाबादी

किसने वादा किया है आने का
हुस्न देखो .गरीब.खाने का

रूह को आईना दिखाते हैं
दर-ओ-दीवार मुस्कुराते हैं

ये दिन बहार के अब के भी रास न आ सके
कि गुंचे खिल तो सके, खिल के मुस्कुरा न सके
(गुंचे : फूल की कलियां)

दिल की चोटों ने कभी चैन से रहने न दिया
जब चली सर्द हवा मैंने तुझे याद किया

इसका रोना नहीं क्यों तुमने किया दिल बर्बाद
इसका .गम है कि बहुत देर में बर्बाद किया

सीने पे मेरे जब से रक्खा है हाथ तूने
कुछ और दर्द-ए-दिल में शिद्दत-सी हो गई है

खजर है जोश हाथ में दामन लहू से तर
ये उसके तौर हैं के मसीहा कहें जिसे

चुप रहूं तो हर नफस डसता है नागन की तरह
आह भरने में है रुसवाई, किसे आवाज दूं
(न.फस: सांस)

कहते हो गम से परीशां हुए जाते हैं'
यह नहीं कहते कि 'इंसान हुए जाते हैं'

नक्श-ए-ख्याल दिल से मिटाया नहीं हनोज
बेदर्द मैंने तुझको भुलाया नहीं हनोज
(हनोज : अब तक)

हवाएं शोर कितना ही लगाएं आंधियां बनकर
मगर जो घिर के आता है वो बादल छा ही जाता है

मेरे गुरूर के माथे पे आ चली है शिकन
बदल रही है तो बदले हवा जमाने की

इबादत करते हैं जो लोग जन्नत की तमन्ना में
इबादत तो नहीं है इक तरह की वो तिजारत है
(तिजारत : व्यापार)

आसमां जागा है सर में और सीने में जमीं
तब मुझे महसूस होता है कि मैं कुछ भी नहीं

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