Sunday, 21 July 2013

दाग देहलवी

दाग देहलवी

जन्म : 1831
मृत्यु : 1865
उर्दू शायरी में एक अहम नाम। सहज और पारदर्शी भाषा के साथ नाटकीय अंदाज में बारीक खयालों के इजहार के लिए मशहूर हुए।

दिल लेके मुफ्त कहते हैं, कुछ काम का नहीं
उल्टी शिकायतें हुईं, अहसान तो गया

मिलाते हो उसी को खाक में, जो दिल से मिलता है
मेरी जां चाहने वाला, बड़ी मुश्किल से मिलता है

बारहा उसने सफाई हमसे की
कुछ खलिश* हर बार बाकी रह गई

एक तो हुस्न बला, उस पे बनावट आफत
घर बिगाड़ेंगे हजारों के, संवरने वाले

ऐ .फलक चाहिए जी भर के नजारा हमको
जाके आना नहीं दुनिया में दोबारा हमको

आंखों से लड़े गेसु-ए-खमदार* से उलझे
ये हारते दिल रोज ही दो चार से उलझे

.फलक* देता है जिनको ऐश उनको गम भी होते हैं
जहां बजते हैं नक्कारे, वहां मातम भी होते हैं

खुदा जब दोस्त है ऐ दाग, क्या दुश्मन से अंदेशा
हमारा कुछ किसी की दुश्मनी से हो नहीं सकता

जो हो आगाज* में बेहतर, वो खुशी है बदतर
जिसका अंजाम हो अच्छा, वो मुसीबत अच्छी

दुनिया में कोई लुत्फ करे या जफा*
जब मैं न हूं बला से मेरी कुछ हुआ करे
मुश्किल शब्दों के अर्थ :
.खलिश* = तकलीफ, गेसु-ए-.खमदार* = बलखाई जुल्फें, फलक* = आसमान, आगाज* = शुरुआत, जफा* = बेवफाई।

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