निदा फाज़ली
जन्म: 12 अक्टूबर, 1938
उर्दू के जाने-माने शायर। आधुनिक उर्दू कविता को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने में अहम किरदार। फिल्मों के लिए कई चर्चित गीत भी लिखे हैं। 1998 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुए। चंद शेर:
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए
दिल में न हो जुअर्त* तो मुहब्बत नहीं मिलती
खैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती
उसके दुश्मन हैं बहुत, आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा
मुंह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन
आवाजों के बाजारों में, .खामोशी पहचाने कौन
हर आदमी में होते हैं, दस-बीस आदमी
जिसको भी देखना हो, कई बार देखना
जब किसी से कोई गिला* रखना
सामने अपने आईना रखना
दुश्मनी लाख सही, खत्म न कीजे रिश्ता
दिल मिले न मिले, हाथ मिलाते रहिए
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी
कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी, चैन से जीने की सूरत नहीं हुई
जिसको चाहा उसे अपना न सके, जो मिला उससे मुहब्बत न हुई
किसी को टूट के चाहा, किसी से खिंच के रहे
दुखों की राहतें झेलीं, खुशी के दर्द सहे
मुमकिन है सफर हो आसां, अब साथ भी चल कर देखें
कुछ तुम भी बदल कर देखो, कुछ हम भी बदल कर देखें
तू इस तरह से मेरी जिदिगी में शामिल है
जहां भी जाऊं, ये लगता है, तेरी मह.फल है
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कहीं जमीन, कहीं आस्मां नहीं मिलता
मुश्किल शब्दों के अर्थ : जुअर्त* = साहस, गिला* = शिकायत।
जन्म: 12 अक्टूबर, 1938
उर्दू के जाने-माने शायर। आधुनिक उर्दू कविता को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने में अहम किरदार। फिल्मों के लिए कई चर्चित गीत भी लिखे हैं। 1998 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुए। चंद शेर:
घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें
किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए
दिल में न हो जुअर्त* तो मुहब्बत नहीं मिलती
खैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती
उसके दुश्मन हैं बहुत, आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा
मुंह की बात सुने हर कोई, दिल के दर्द को जाने कौन
आवाजों के बाजारों में, .खामोशी पहचाने कौन
हर आदमी में होते हैं, दस-बीस आदमी
जिसको भी देखना हो, कई बार देखना
जब किसी से कोई गिला* रखना
सामने अपने आईना रखना
दुश्मनी लाख सही, खत्म न कीजे रिश्ता
दिल मिले न मिले, हाथ मिलाते रहिए
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी
कुछ तबीयत ही मिली थी ऐसी, चैन से जीने की सूरत नहीं हुई
जिसको चाहा उसे अपना न सके, जो मिला उससे मुहब्बत न हुई
किसी को टूट के चाहा, किसी से खिंच के रहे
दुखों की राहतें झेलीं, खुशी के दर्द सहे
मुमकिन है सफर हो आसां, अब साथ भी चल कर देखें
कुछ तुम भी बदल कर देखो, कुछ हम भी बदल कर देखें
तू इस तरह से मेरी जिदिगी में शामिल है
जहां भी जाऊं, ये लगता है, तेरी मह.फल है
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कहीं जमीन, कहीं आस्मां नहीं मिलता
मुश्किल शब्दों के अर्थ : जुअर्त* = साहस, गिला* = शिकायत।
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