Sunday, 21 July 2013

मिर्ज़ा ग़ालिब

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश प दम निकले 
बहुत निकले मेरे अरमां, लेकिन फिर भी कम निकले 

दिल-ए-नादां, तुझे हुआ क्या है 
आखिर इस दर्द की दवा क्या है 

मेहरबां होके बुलाओ मुझे, चाहो जिस वक्त 
मैं गया वक्त नहीं हूं, कि फिर आ भी न सकूं 

या रब, न वह समझे हैं, न समझेंगे मेरी बात 
दे और दिल उनको, जो न दे मुझको जबां और 

कैदे-हयात बंदे-.गम, अस्ल में दोनों एक हैं 
मौत से पहले आदमी, .गम से निजात पाए क्यों 

गालिबे-खस्ता के बगैर कौन-से काम बंद हैं 
रोइए जार-जार क्या, कीजिए हाय-हाय क्यों 

रंज से खूंगर हुआ इंसां तो मिट जाता है .गम 
मुश्किलें मुझपे पड़ीं इतनी कि आसां हो गईं 

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