'मजाज़' लखनवी का मूल नाम असरारुल हक़ था। उनका जन्म यूपी के रुदौली कस्बे में 1911 में हुआ था। 5 दिसंबर (बुधवार) को उनकी पुण्यतिथि है। कुल 44 बरस जीनेवाले मजाज़ ने उर्दू शायरी में जो मकाम हासिल किया, वह बहुतों के हिस्से नहीं आया। मजाज़ की मकबूलियत का आलम यह था कि उनकी नज़्में दूसरी भाषाओं में भी खूब सराही गई। खुद उर्दू में उन्होंने भाषा के नए पैमाने गढ़े।
------------------------------------------------------------------------------------------------------------
हाय वह वक्त कि बेपिये बेहोशी थी,
हाय यह वक्त कि पीकर भी मख्मूर नहीं।
(मख्मूर- नशे में चूर)
इश्क का ज़ौके-नज़ारा मुफ्त को बदनाम है,
हुस्न खुद बेताब है जलवा दिखाने के लिए।
(ज़ौके-नज़ाराः देखने का शौक़)
बहुत मुश्किल है दुनियां का संवरना
तिरी जुल्फों का पेचो-ख़म नहीं है।
आंख से आंख जब नहीं मिलती
दिल से दिल हमकलाम होता है
(हमकलामः आपसी बातचीत करनेवाले)
ख़ुद दिल में रखके आंख से पर्दा करे कोई
हां लुफ्त जब है पा के भी ढूंढा करे कोई।
लाख छिपाते हो मगर छिपके भी मस्तूर नहीं
तुम अजब चीज़ हो, नजदीक नहीं दूर नहीं
(मस्तूर-प्रकट)
हुस्न को नाहक पशेमां कर दिया
दे जुनूं ये भी कोई अंदाज है।
(पशेमां=शर्मिंदा)
कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी
कुछ मुझे भी ख़राब होना था
तुझी से तुझे छीनना चाहता हूं
ये क्या चाहता हूं, ये क्या चाहता हूं।
तेरे गुनहगार, गुनहगार ही सही
तेरे करम की आस लगाए हुए तो हैं।
ये रंग-बहार-आलम है
क्यों फ़िक्र है तुझको ऐ साकी!
मह़फिल तो तेरी सूना न हुई कुछ उठ भी गए, कुछ आ भी गए।
उनका करम है उनकी मुहब्बत
क्या मेरे नग़्मे, क्या मेरी हस्ती।
ये तो क्या कहिए चला था मैं कहां से हमदम
मुझको ये भी न था मालूम, किधर जाना था
चारागरी सर-आंखों पर, इस चारागरी से क्या होगा
दर्द की अपनी आप दवा है, तुमसे क्या अच्छा होगा
(चारागरी=इलाज)
कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी
कुछ मुझे भी ख़राब होना था
------------------------------------------------------------------------------------------------------------
हाय वह वक्त कि बेपिये बेहोशी थी,
हाय यह वक्त कि पीकर भी मख्मूर नहीं।
(मख्मूर- नशे में चूर)
इश्क का ज़ौके-नज़ारा मुफ्त को बदनाम है,
हुस्न खुद बेताब है जलवा दिखाने के लिए।
बहुत मुश्किल है दुनियां का संवरना
तिरी जुल्फों का पेचो-ख़म नहीं है।
आंख से आंख जब नहीं मिलती
दिल से दिल हमकलाम होता है
(हमकलामः आपसी बातचीत करनेवाले)
ख़ुद दिल में रखके आंख से पर्दा करे कोई
हां लुफ्त जब है पा के भी ढूंढा करे कोई।
लाख छिपाते हो मगर छिपके भी मस्तूर नहीं
तुम अजब चीज़ हो, नजदीक नहीं दूर नहीं
(मस्तूर-प्रकट)
हुस्न को नाहक पशेमां कर दिया
दे जुनूं ये भी कोई अंदाज है।
(पशेमां=शर्मिंदा)
कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी
कुछ मुझे भी ख़राब होना था
तुझी से तुझे छीनना चाहता हूं
ये क्या चाहता हूं, ये क्या चाहता हूं।
तेरे गुनहगार, गुनहगार ही सही
तेरे करम की आस लगाए हुए तो हैं।
ये रंग-बहार-आलम है
क्यों फ़िक्र है तुझको ऐ साकी!
मह़फिल तो तेरी सूना न हुई कुछ उठ भी गए, कुछ आ भी गए।
उनका करम है उनकी मुहब्बत
क्या मेरे नग़्मे, क्या मेरी हस्ती।
ये तो क्या कहिए चला था मैं कहां से हमदम
मुझको ये भी न था मालूम, किधर जाना था
चारागरी सर-आंखों पर, इस चारागरी से क्या होगा
दर्द की अपनी आप दवा है, तुमसे क्या अच्छा होगा
(चारागरी=इलाज)
कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी
कुछ मुझे भी ख़राब होना था
No comments:
Post a Comment